This website uses cookies to provide a better user experience.

By clicking accept, you agree to the policies outlined in the Cookie Settings.

accessibility
Accessibility Controls
Accessibility Controls

सांची के बौद्ध स्‍मारक

Inner  Banner
Agra Fort

सांची के बौद्ध स्‍मारक

मध्‍य प्रदेश

इस स्‍थल पर सबसे प्राचीन संरक्षित स्‍मारक के निर्माण किए जाने (आकेमेनिड कला से प्रभावित अशोक के स्‍तंभ जिसमें शीर्ष पर सिंहों को प्रदर्शित किया गया है) के समय से सम्‍पूर्ण मौर्य साम्राज्‍य और बाद में भारत में शुंग, सातवाहन, कुषाण और गुप्‍त वंश के दौरान संस्‍कृति और इससे संबंधित गौण कलाओं के प्रसार में एक संवाहक के रूप में सांची की भूमिका जगजाहिर है।

सांची सबसे प्राचीन विद्यमान बौद्ध विहार है। यद्यपि भगवान बुद्ध ने अपने किसी पूर्व जन्‍म अथवा पृथ्‍वी पर अपने अवतरण काल में कभी यहां प्रवास नहीं किया था फिर भी इस तीर्थ स्‍थल का धार्मिक महत्‍व जगजाहिर है। स्‍तूप 1 के अवशेष कक्ष में श्रीपुत्र के अवशेष रखे हैं जो साख्‍यमुनि के शिष्‍य थे और अपने गुरू से छ: महीने पहले उनकी मृत्‍यु गई थी; विशेषकर हीनयान के अनुयायियों द्वारा उनकी पूजा की जाती है। हिन्‍दू धर्म के प्रचार के बाद मध्‍यकालीन भारत में सांची बौद्ध धर्म का मुख्‍य केन्‍द्र रहा है और सांची तीसरी सदी ई.पू. से लेकर प्रथम शताब्‍दी ईसवी की अवधि के दौरान एक प्रमुख बौद्ध विहार के रूप में अद्वितीय क्षणों का गवाह रहा है।

जनरल टेलर द्वारा 1818 में खोजे जाने तक सांची 600 वर्षों तक अज्ञात रहा। भोपाल से 45 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह स्‍थान पेड़-पौधों से ढक गया था। भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण द्वारा कार्य संभालने एवं अपने नियंत्रण में लेने से पहले तक यहां पर खुदाई कार्य कुछ-कुछ अव्यवस्थित तरीके से आरंभ हुआ। धीरे-धीरे और जैसे–जैसे पहाड़ी को साफ किया गया तो लगभग 50 स्‍मारकों के अवशेष निकाले गए जिससे भारत में अत्‍यंत असाधारण पुरातात्विक परिसरों में से एक का पता चला।