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खजुराहों के स्‍मारक समूह

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खजुराहों के स्‍मारक समूह

मध्‍य प्रदेश

खजुराहो के स्‍मारक परिसर एक अदभुत कला सृजन को प्रदर्शित करते हैं। ये स्‍मारक जितने अपने उच्‍चस्‍तरीय मौलिक स्‍थापत्‍य के लिए जाने जाते हैं उतने ही मनोरंजन के विविध दृश्‍यों के पौराणिक मंचन पर आधारित विस्‍मयकारी विशेषता की नक्‍काशी वाली अपनी सज्‍जा-शैली के लिए भी प्रसिद्ध इनमें से कुछ दृश्‍य विभिन्‍न व्‍याख्‍याओं की गुंजाइश रखते है जो पवित्र और सांसारिक दोनों तरह की हैं।

खजुराहो राजपूत वंश के चंदेल शासकों की राजधानियों में से एक रही है यह शासक 10वीं शताब्‍दी की शुरूआत में सत्‍ता में आए और यह वंश सन 950 और 1050 के बीच अपने चरमोत्‍कर्ष पर पहुंचा। चंदेल शासन काल के दौरान खजुराहो में बनाए गए 85 मंदिरों (और जो सन 1335 में इब्‍ने बतूता जैसे महान यात्री द्वारा देखे जाने के समय भी वैभवशाली थे) में से 22 अभी भी अस्तित्‍व में हैं और ये लगभग 6 वर्ग कि.मी. में फैले हैं।

ब्राह्मण और जैन जैसे दो भिन्‍न धर्मों के स्‍मारक होने के बावजूद भी खजुराहो के मंदिरों को एकरूपता वाली शैली के रूप में देखा जाता है। इन मंदिरों में एक चबूतरे पर उप-भवन बना है और इसके ऊपर ‘जंघा’ नामक अत्‍यधिक सुसज्जित भवन का मुख्‍य भाग खड़ा है जो गढ़े हुए पैनलों के बहुत-से रजिस्‍टर से सज्जित हैं जिन पर मुक्‍त – कार्य वीथियां खुली हुई हैं। यह शिखर नामक वक्रनुमा आकार के बहुत से खंभों की एक श्रृंखला से सज्जित है।

स्‍मारकों के अधिकांश महत्‍वपूर्ण समूह पश्चिमी क्षेत्र में केंद्रित हैं जो पुरातत्‍व संग्रहालय से ज्‍यादा दूर नहीं हैं जिसमें वरहा, लक्ष्‍मण, मतंगेश्‍वरा, कंदरिया, महादेव, चित्रगुप्‍त, चोपरा टैंक, पार्वती विश्‍वनाथ और नंदी मंदिर शामिल हैं। लेकिन पूर्व और दक्षिण स्‍मारक समूहों में भी उल्‍लेखनीय परिसर शामिल हैं (घंटेई पार्श्‍वनाथ, आदिनाथ, शांतिनाथ, दुल्‍हादेव, चतुरभुज)।